बिहार में भाजपा सबसे बड़ी ताकत बनी, पर कुर्सी फिर नीतीश के पास,आखिर क्या है भाजपा की मज़बूरी?

भाजपा ने अपने दोनों डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा को भी दोबारा मौका दिया है।

बिहार में भाजपा सबसे बड़ी ताकत बनी, पर कुर्सी फिर नीतीश के पास,आखिर क्या है भाजपा की मज़बूरी?

बिहार में भाजपा सबसे बड़ी ताकत बनी, पर कुर्सी फिर नीतीश के पास,आखिर क्या है भाजपा की मज़बूरी?

बिहार में विधानसभा चुनाव के नतीजे आते ही यह साफ हो गया कि भाजपा पहली बार राज्य में नंबर 1 पार्टी बनकर उभरी है। इसके बावजूद मुख्यमंत्री की कुर्सी फिर नीतीश कुमार को ही सौंपी जा रही है। वह 20 नवंबर को 10वीं बार शपथ लेंगे। भाजपा ने अपने दोनों डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा को भी दोबारा मौका दिया है।

 

243 सीटों वाली विधानसभा में NDA ने 202 सीटें जीतकर तीन चौथाई बहुमत हासिल किया। भाजपा को 89, जदयू को 85, लोजपा आर को 19, हम को 5 और RLM को 4 सीटें मिलीं। महागठबंधन 35 सीटों पर सिमट गया।

 

अब समझिए वे चार वजहें जिनके चलते भाजपा ने खुद नंबर 1 बनने के बाद भी नीतीश कुमार पर ही भरोसा किया।

 

1. जीत नीतीश के नाम पर हुई

 

पूरे चुनाव में भाजपा ने नीतीश कुमार को ही नेतृत्वकर्ता बताया। प्रधानमंत्री मोदी से लेकर अमित शाह तक हर मंच पर नीतीश का नाम लिया गया। 29 अक्टूबर को अलीनगर की सभा में शाह ने साफ कहा था कि पटना में नीतीश ही रहेंगे।
राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो NDA की भारी जीत नीतीश के नाम और उनकी स्वीकार्यता की वजह से ही हुई। ऐसे में मुख्यमंत्री बदलना भाजपा के लिए एक जोखिम होता।

 

2. भाजपा के पास राज्यव्यापी बड़ा चेहरा नहीं

 

बिहार भाजपा के पास आज भी कोई ऐसा नेता नहीं है जिसकी पकड़ पूरे राज्य में हो। सुशील कुमार मोदी के निधन के बाद OBC कैटेगरी में भाजपा का कोई प्रभावशाली चेहरा नहीं बचा है।
सीनियर पत्रकारों के अनुसार भाजपा ने अब तक खुद का एक मजबूत सीएम फेस तैयार ही नहीं किया। यही खाली जगह बार बार नीतीश कुमार को मजबूत बनाती रही है।

 

3. EBC और कुर्मी वोटरों के खिसकने का डर

 

बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार की सबसे बड़ी ताकत उनका स्थिर वोट बैंक है। कुर्मी, EBC और महादलित समुदाय में उनकी पकड़ किसी भी पार्टी से ज्यादा है।
एक्सपर्ट कहते हैं कि अगर भाजपा नीतीश को बिना उनकी मर्जी हटाती तो यह वोटर नाराज होकर भाजपा के खिलाफ खड़े हो सकते थे। फिलहाल भाजपा इस रिस्क को बिल्कुल नहीं लेना चाहती क्योंकि उसे लंबे समय तक राज्य की राजनीति में बने रहना है।

 

4. केंद्र की राजनीति में नीतीश की अहमियत

 

लोकसभा में NDA के पास 292 सीटें हैं जिनमें जदयू की 12 सीटें शामिल हैं। अगर जदयू बाहर निकलता है तो NDA के पास 280 सीटें बचेंगी जो बहुमत से 8 ज्यादा हैं।
सरकार तो बनी रहेगी लेकिन इससे गठबंधन की स्थिरता पर सवाल उठेंगे और राजनीतिक संदेश भी गलत जाएगा। इसलिए भाजपा नीतीश को खुश रखना चाहती है ताकि केंद्र की राजनीति में भी कोई अनिश्चितता न बने।